देहरादून। दून विश्वविद्यालय द्वारा “दून यूनिवर्सिटी एकेडमिक फोरम फॉर कौमबैटिंग कोविड-19” अंतर्गत आयोजित फ्राइडे लेक्चर सीरीज के तत्वावधान में शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि कोविड-19 महामारी का पहला के उत्तराखंड को मार्च के महीने पता चला और उस वक्त राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था में इस महामारी के प्रभाव एवं प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए नाकाफी थी. सरकार ने युद्स्तर पर कोविड-19 अस्पतालों का निर्माण, ऑक्सीजन सिलेंडर, आईसीयू, वेंटिलेटर, पीपीई किट सैनिटाइजर का उत्पादन, हाइड्रोसील क्लोरोफिन दवाइयों का उत्पादन, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, आइसोलेशन वार्ड, एंबुलेंस इत्यादि की व्यवस्था कई गुना बढ़ाई गयी. आशा कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर स्थिति का जायजा लेने के लिए तैनात किया गया था. लोगों की आवाजाही को कम करने के लिए वर्क फ्रॉम होम तत्काल शुरू किया गया. डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट का इस्तेमाल करके सख्ती के साथ लॉक डाउन का पालन कराया गया. उत्तराखंड की सीमाओं को सील किया गया और वहां पर कोविड-19 के टेस्ट की व्यवस्था की गई. नतीजतन पहली लहर को काफी प्रभावी तरीके से नियंत्रित करने में सफलता प्राप्त हुई और एक समय ऐसा भी आया कि कोविड-19 महामारी से होने वाली मृत्यु संख्या शून्य के स्तर पर पहुँच गयी. उन्होंने कहा की मुझे लगता है कि हमारे व्यवहार में लापरवाही के कारण लगातार घट रहे कोविड-19 के मरीजों की संख्या फिर से बढ़ने लगी जिससे दूसरी लहर काफी तेजी के साथ न सिर्फ राज्य में बल्कि देश के प्रत्येक क्षेत्र में फैली. विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों को चाहिए कि वे जन जागरूकता अभियान विद्यार्थियों के माध्यम से संचालित करें एवं वैक्सीन के उपयोग हेतु जनता को जागरूक करें और कोविड-19 के अनुरूप व्यवहार अपनाना होगा. तीसरी लहर से निपटने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि टीकाकरण में तेजी लाई जाए और सब के लिए टीकाकरण अनिवार्य किया जाए. और बच्चों के लिए अलग से वार्ड बनाए जाएं जहां पर उनके माता-पिता के रहने की व्यवस्था भी हो. उन्होंने बताया कि बाल रोग विशेषज्ञ कि उत्तराखंड में कमी है जो कि एक परेशानी का कारण है. राज्य विश्वविद्यालयों को कोविड-19 के संदर्भ में अनुसंधान करना चाहिए ताकि इससे निपटने के लिए सरकार को कार योजना बनाने में सहायता मिले.
इस अवसर पर वन्य जीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एस सत्य कुमार ने कहा कि कोविड-19 महामारी पर देश और दुनिया के शिक्षण संस्थान तेजी के साथ कार्य कर रहे हैं भारत में भी कई शिक्षण संस्थान इस महामारी के प्रभाव एवं इससे प्रभावित विभिन्न क्षेत्रों जैसे अर्थव्यवस्था, हॉस्पिटैलिटी एवं पर्यटन, पर्यावरण, बायो टेक्नोलॉजी, नैनोटेक्नोलॉजी एवं वैक्सीन उत्पादन इत्यादि पर शोध संचालित कर रहे हैं उन्होंने कहा कि हमें ऑनलाइन कार्यक्रमों को बढ़ावा देना होगा. उन्होंने बताया कि यूनिवर्सिटी के द्वारा कोविड-19 से संबंधित रिसर्च करके आम भाषा में लोगों को विश्वसनीय सूचनाएं दिए जाने की आवश्यकता है क्योंकि सोशल मीडिया में बहुत सी अफवाहें उड़ती रहती हैं. यूनिवर्सिटी में बायो बबल बनाए जाने की भी आवश्यकता है ताकि कोविड-19 का संक्रमण थम सके जैसे कि कैंपस में होने वाले क्रियाकलापों को कम किया जाना चाहिए और उच्च गुणवत्ता (क्वालिटी) की वर्चुअल लर्निंग को उपलब्ध करवाना चाहिए. यूनिवर्सिटी के अंदर बहुत सी खाली जगह होती है जिसका इस्तेमाल कोविड-19 से निपटने के लिए किया जा सकता है जैसे कि पार्किंग में वैक्सीनेशन सेंटर या खाली लेबोरेटरी का अन्य तरीके से उपयोग. एनसीसी, एनएसएस या यूनिवर्सिटी में स्थापित कोई अन्य क्लब को सहायता समूह बनाकर उन्हें कोविड-19 के प्रबंधन के विभिन्न कार्यों में लगाया जा सकता है जैसे कि जरूरतमंदों को दवाओं और खाने की सप्लाई और मनोवैज्ञानिक सहायता के लिए या जिन लोगों के पास वैक्सीन का पंजीकरण करने के लिए एंड्राइड मोबाइल नहीं है उनका अपने मोबाइल के माध्यम से पंजीकरण करवाना. यूनिवर्सिटी को रिसर्च का दायरा बढ़ाए जाने की आवश्यकता है जैसे की अर्थव्यवस्था, पर्यटन, रोजगार और शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर कोविड-19 का क्या प्रभाव पड़ रहा है, वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल का क्या परिणाम आ रहे हैं, वायरस का प्रसार जनसंख्या में किस प्रकार से हो रहा है, कोविड-19 के अलावा जो अन्य बीमारियां हैं उनका प्रबंधन किस प्रकार से हो सकता है, उच्च शिक्षा में कोविड-19 का क्या प्रभाव पड़ा है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया की शोध बहु आयामी और अंतर संस्थागत सहयोग से होना चाहिए एवं जंगली और घरेलू जानवर के ऊपर भी रिसर्च करनी चाहिए कि ताकि सही है जा ना जा सके इनके द्वारा किस तरह से बीमारियों का प्रसार होता है.
इस अवसर पर स्वीडन में भारत के पूर्व राजदूत श्री अशोक सज्जन हार ने कोविड-19 के दौर में भारत की वैश्विक स्तर पर बढ़ती सहायक एवं लोकप्रियता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम विश्व की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और आने वाले समय में हमारी छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और बेहतर होगी उन्होंने कहा कि भारत विश्व के विभिन्न क्षेत्रीय एवं बहुद्देश्यीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों में एक महत्वपूर्ण साझीदार एवं भागीदार के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहा है श्री सज्जन ने कहा कि भारत-अमेरिका, भारत-रूस, भारत-जापान एवं भारत ब्रिटेन सहित कई देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध भी काफी मजबूती से सामने आए हैं जिनके परिणाम आने वाले समय में देश को किसी भी अदृश्य चुनौती से सामना करने में सहायक होंगे. उन्होंने कहा कि अमेरिका और चीन की व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा एवं भारत व चीन के संबंधों को मजबूत करने के लिए वैश्विक स्तर पर नए अवसर भी उपलब्ध होंगे जिनका आने वाले समय में देश को लाभ मिलेगा. उन्होंने बताया की दूसरी लहर के घातक होने का मुख्य कारण वायरस के अंदर म्यूटेशन हो जाना है. जब हिंदुस्तान में पहली लहराई थी उस समय इस आपदा से निपटने के लिए संसाधनों का अभाव था जैसे कि पर्याप्त मात्रा में मास्क और पीईपी किट नहीं थे लेकिन बहुत जल्दी ही भारत में पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होने लगा और इनका आयात संपूर्ण विश्व में किया गया. भारत में न केवल विदेशी वैक्सीन बन रही है बल्कि भारत ने अपनी स्वदेशी वैक्सीन भी विकसित की. भारत सरकार ने “वैक्सीन मैत्री” नाम से एक अभियान चलाया जिसमें भारत सरकार ने विश्व के अनेक देशों को भारत में बनी हुई न केवल वैक्सीन उपलब्ध कराई बल्कि अन्य प्रकार की सहायता प्रदान की. जिसका लाभ भारत को दूसरी लहर में देखने को मिला क्योंकि विश्व के अनेक देशों ने कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण जब भारत में विषम परिस्थिति थी तो बेशर्त सहायता अनेक प्रकार से प्रदान की. उन्होंने इस बात की संभावना भी जताई की कोविड-19 वायरस चाइना के द्वारा इजाद किया हुआ एक केमिकल वेपन हो सकता है. उन्होंने बताया कि शुरू में कुछ लोगों का अनेक अफवाहों के कारण भारत में बनी हुई वैक्सीन के ऊपर भरोसा नहीं किया और लोग वैक्सीन लगाने से हिचक रहे थे. इसीलिए भारत सरकार ने बहुत सी वैक्सीन को “वैक्सीन मैत्री” कार्यक्रम के तहत विदेशों तक पहुंचाया क्योंकि वैक्सीन की एक्सपायरी डेट खत्म होने से पहले उसका सदुपयोग हो सके. साथ ही उन्होंने बताया की बहुत जल्दी ही वैक्सीन की कमी दूर हो जाएगी और प्रत्येक व्यक्ति को टीका लग सकेगा.
दून विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय को शैक्षणिक उत्कृष्टता के शिखर पर ले जाना हमारी संकल्पना है और हम देश और दुनिया के शिक्षाविदों विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों की मदद से इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील एवं प्रतिबद्ध हैं कुलपति ने कहा कि कोविड-19 की चुनौतियों को किस प्रकार नियंत्रित किया जाए इस संदर्भ में विश्वविद्यालय अनवरत विशेषज्ञों शिक्षकों एवं समाज के साथ संवाद स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है इस अवसर पर उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर ओ पी एस नेगी, उच्च शिक्षा विभाग के सलाहकार अवसर केडी पुरोहित डॉ एसपी सती, प्रो कुसुम अरुणाचलम, डॉ ऋषिकेश, कुलसचिव डॉ मंगल सिंह मन्दर्वाल, वित्त नियंत्रक श्री जी सिलवानी, उप कुलसचिव श्री नरेंद्र लाल, डॉ अरुण कुमार, डॉ राजेश भट्ट, डॉ नरेश मिश्रा सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो एच सी पुरोहित ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के संयोजक प्रो हर्ष डोभाल ने किया.