अंगद ने तोड़ा रावण का अहंकार।

सितारगंज। रामलीला मंचन के 13 वें दिन की रामलीला में विभीषण शरणागति,रामेश्वरम स्थापना,अंगद रावण संवाद तक कि लीला का मंचन किया गया। वहीं व्यास पीठ से बताया गया कि रामायण एक ऐसा ग्रंथ है जहां मर्यादा, स्‍नेह और संस्‍कारों का हर कदम पर उदाहरण मिलता है। लेकिन कई ऐसे भी प्रसंग हुए हैं जिनका रहस्‍य एक बार में समझ पाना मुश्किल सा लगता है। एक ऐसा ही प्रसंग आता है जब श्रीराम लंका पहुंच जाते हैं और दूत के रूप में बालि पुत्र युवराज अंगद को लंकाधिपति रावण के पास भेजते हैं। मंच द्वारा दर्शाया गया कि रावण स्‍वयं अंगद के पैर पकड़ने के लिए जाता है। लेकिन उनके पहुंचते ही अंगद कुमार अपना पैर हटाकर कहते हैं कि तुम मेरे पांव क्‍यों पकड़ते हो। पकड़ना ही है तो तीनों लोकों के स्‍वामी श्रीराम के पैर पकड़ो। वह शरणागतवत्‍सल हैं। तुम उनकी शरण में जाओगे तो तुम्‍हारे प्राण अवश्‍य बच जाएंगे। अन्‍यथा युद्ध में बंधु-बांधवों समेत तुम्‍हारी मृत्‍यु भी तय है। उस दृश्य से अहंकार पर विनम्रता की विजय हुई। इस अवसर पर वृंदावन से आये कलाकरों के साथ रामलीला संयोजक राकेश त्यागी, शिवपाल चौहान,अमित रस्तोगी, पवन अग्रवाल, संजय गोयल,आशीष पांडेय,अभिषेक जैन, बंटी कौशल, मनोज अरोरा, भीमसेन गर्ग भगवान भंडारी आदि उपस्थित रहे।

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