अपने बच्चों को मनोवैज्ञानिक समस्याओं बचाने के लिए माता पिता बने उनका सपोर्ट सिस्टम- प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल
इमोशन को फील और डील करने से ही होंगे हील।
देहरादून। दून विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग के द्वारा युवा मनोवैज्ञानिकों के लिए एक कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। जिसमें स्नातक, परास्नातक के विद्यार्थियों और पीएचडी के शोधार्थियों के साथ-साथ शिक्षकों ने भी प्रतिभाग किया। इस कार्यशाला की थीम “फील, डील एंड हील” थी और जिस का केंद्र बिंदु किशोरावस्था की नवीन मनोवैज्ञानिक समस्याएं रहा।
दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने वर्कशॉप हेतु अपने संदेश में विद्यार्थियों कहा कि किशोरावस्था जीवन का एक ऐसा समय होता है जिसमें किशोर- किशोरियाँ मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तन के दौर से गुजर रहे होते हैं. इस अवस्था में माता पिता को अपने बच्चों के साथ बहुत संवेदनशील रहने के साथ-साथ उनका सपोर्ट सिस्टम बनने आवश्यकता होती है. आधुनिक समय में व्यस्तता या अन्य कारण से बहुत से मां-बाप अपने बच्चों के साथ सही से ना तो समय बिता पाते हैं और ना ही संवाद कायम कर पाते हैं. बदलते समय के साथ माता पिता को अपने बच्चों की नई जनरेशन के हिसाब से उनकी आवश्यकताओं को समझने की जरूरत है, अन्यथा परिणाम यह हो सकता है कि बच्चे उस गैप को भरने के लिए परिवार से बाहर सपोर्ट सिस्टम खोजने लगते हैं. कई बच्चे सपोर्ट सिस्टम की खोज में इंटरनेट की वर्चुअल दुनिया में किसी अनजान व्यक्ति से संपर्क स्थापित करने लगते हैं और अक्सर ऐसे केस में बच्चे शोषण का शिकार हो सकते हैं.
इस कार्यशाला में रिसोर्स पर्सन के तौर पर काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट डॉ अमन कपूर ने कहा कि अगर आप अपनी लाइफ को हील करना चाहते हैं तो सबसे पहले इमोशन को फील और फिर डील करना होगा. 70% मानसिक समस्याएं बाल्यावस्था और किशोरावस्था से ही शुरू हो जाती हैं. रिसर्च बताती है कि 10 से 19 साल के 13 परसेंट लोगों में मेंटल डिसऑर्डर डायग्नोसड हो जाता है. किसी नकारात्मक इवेंट के बाद हम क्या सोचते हैं उसके बारे में जानना बहुत जरूरी है क्योंकि हमारी सोच डिसाइड करती है कि हम कैसा महसूस करेंगे. आज के युवाओं में फ़ोन/ स्क्रीन/ ड्रग एडिक्शन एक भीषण समस्या के रूप में सामने आया है. डार्क वेब किशोरों लिए एक नया खतरा है इससे मां-बाप अनजान है और कई बार किशोर इसमें लाइव क्राइम/ सेक्स जैसी घटनाओं को देखने लग जाते हैं. इस ओर वही किशोर ज्यादा जाते हैं जो अपने परिवार या माता-पिता से कटे रहते हैं. अगर परिवार में माता-पिता की मेंटल हेल्थ सही ना हो, उनके बीच किसी भी तरह की हिंसा होती हो, और उनके बीच कम्युनिकेशन गैप हो तो ऐसे में बच्चों के ऊपर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
मनोविज्ञान विभाग की विभाग अध्यक्ष डॉ सविता तिवारी कर्नाटक ने कहा कि काउंसलिंग बहुत जरूरी है क्योंकि इससे हमारे देखने के नजरिए में परिवर्तन आता है. किसी को ध्यान से सुनने भर से भी हीलिंग प्रोसेस शुरू हो जाती है. काउंसलर के लिए जरूरी है कि वह अपने क्लाइंट को गैर आलोचनात्मक, बिना किसी शर्त के सकारात्मक सम्मान और समानुभूति के साथ रहे.
वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ राजेश भट्ट ने कहा कि मनोवैज्ञानिकों का भविष्य सुनहरा है और लगातार इस क्षेत्र में जॉब के अवसर बढ़ रहे हैं. आमजन के मध्य इस बात की जागरूकता बढ़ी है की मनोवैज्ञानिक समस्याओं से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिकों के द्वारा दिया गया परामर्श आवश्यक है और यदि समय रहते सही समय पर मनोवैज्ञानिक परामर्श लिया जाए तो गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याओं से बचा जा सकता है.
इस कार्यक्रम के दौरान मंच का संचालन सिद्धांत कटारिया एवं विनायक सिंह ने किया. इस कार्यक्रम के दौरान डॉ स्वाति सिंह, डॉ कल्पना सिंह, रिचा नेगी, अक्षरा सिंह, अनामिका भारद्वाज, दीपक कुमार, आयुषी, अंजलि सुयाल, मोहम्मद आरिफ और विपुल आदि ने प्रतिभाग किया.