“जानकारों के मुताबिक तीसरी लहर बच्चों के लिए घातक होगी.
उत्तराखंड में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के जितने पद हैं, उनमें से आधे से कम डॉक्टर कार्यरत हैं. एक सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर के लिए तो अब भी राज्य तरस रहा है. ऐसे में, कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर को लेकर क्या तैयारी है और क्या चिंताएं, जानिए
उत्तराखंड:- आपके पास बंदूक भी हो और गोली भी, लेकिन इसे चलाने वाले सिपाही ही न हों तो क्या जंग जीती जा सकती है? एक ऐसा ही सवाल उत्तराखंड के हेल्थकेयर सिस्टम के सामने मुंह बाए खड़ा है. ऑपरेशन थिएटर हैं, सर्जिकल उपकरण हैं, लेकिन ऑपरेशन को अंजाम देने वाले कुशल और काबिल हाथ नहीं हैं. अब जबकि, कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर से निपटने के लिए राज्य रणनीति तैयार कर रहा है, तो विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी बड़ा सवाल बन गई है. उत्तराखंड में ज़मीनी हकीकत बयान की जाए तो विशेषज्ञ डॉक्टरों के जितने पद हैं, उसके मुकाबले मात्र 40 फीसदी ही तैनात हैं. ऐसे में, कोविड की तीसरी लहर से निपट पाना एक बड़ी चुनौती दिख रहा है.
उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाएं हमेशा ही सवालों के घेरे में रही हैं. गर्भवती महिला की मौत, सड़क पर प्रसव जैसी खबरें सुर्खियां बनती रही हैं. कैग की ताज़ा रिपोर्ट में भी उत्तराखंड की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर पेश की गई. इस बीच, कोविड संक्रमण ने उत्तराखंड में जो कहर बरपाया, उससे स्वास्थ्य ढांचे की सारी परतें खुल गईं. हालांकि कोरोना काल में हेल्थ के बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर में कुछ सुधार ज़रूर हुआ, लेकिन डॉक्टरों की उपलब्धता अब भी दूर की कौड़ी बनी हुई है. स्पेशलिस्टों का तो भारी टोटा है
उत्तराखंड में कोरोना
थर्ड वेव से निपटने के लिए उत्तराखंड के सामने कई चुनौतियां हैं.
कमी के आंकड़े बहुत हैं!
हालात ये हैं कि स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के करीब 58 फीसदी पद खाली पडे हैं. कुल मिलाकर उत्तराखंड में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के 1187 पदों के विपरीत 492 डॉक्टर ही कार्यरत हैं. हाल में मेडिकल चयन बोर्ड से 375 डॉक्टर राज्य को मिले, लेकिन इनमें से भी 100 से ज़्यादा डॉक्टरों ने जॉइन ही नहीं किया.
उत्तराखंड के अस्पतालों में सर्जन के 140 पद हैं, लेकिन तैनात मात्र चालीस सर्जन ही हैं.
फिजीशियन के 149 पदों के विपरीत 117 डॉक्टरों के पद अभी भी खाली हैं.
एनैस्थैटिस्ट के 145 पदों की जगह मात्र 56 डॉक्टर ही कार्यरत हैं.
155 के विपरीत मात्र 63 बाल रोग विशेषज्ञ ही हेल्थ डिपार्टमेंट के पास हैं.
गायनेक्लोजिस्ट के 165 पदों के विपरीत मात्र 56 डॉक्टर ही तैनात हैं.
चर्म रोग विशेषज्ञ के नाम पर पूरे राज्य में मात्र तीन ही डाक्टर काम कर रहे हैं.
सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स तो राज्य के पास हैं ही नहीं
■कहां कहां से जुटाए जा रहे हैं डॉक्टर?
कोविड की दो-दो लहर झेल चुके उत्तराखंड में सरकार अब तीसरी लहर से लड़ने की तैयारियों में जुटी है. लेकिन, डॉक्टरों के बगैर यह कैसे संभव होगा? स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी का कहना है कि स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के लिए वर्ल्ड बैंक जैंसी एजेंसियों की मदद ली जा रही है. इसके अलावा, रिटायर हो चुके सरकारी डॉक्टरों और आर्मी से रिटायर डॉक्टरों से भी आगे आने की अपील की जा रही है. इस तरह के विकल्पों से तस्वीर साफ है कि कोरोना काल में सरकार की पूरी प्राथमिकता हेल्थ इनफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करने पर रही लेकिन, डॉक्टरों की कमी का सवाल अब भी उलझा पड़ा है.
■क्या बच्चों को मिल सकेगी हेल्थकेयर….?
खासकर थर्ड वेब के मद्देनजर चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी एक बड़ी समस्या बन रही है. 155 चाइल्ड स्पेशलिस्ट के विपरीत मात्र 63 चाइल्ड स्पेशलिस्ट ही राज्य के सरकारी अस्पतालों में कार्यरत हैं. वहीं, जानकार मान रहे हैं कि तीसरी लहर में बच्चों के लिए संक्रमण का खतरा ज़्यादा होगा. ऐसे में, थर्ड वेव में बच्चों के लिए प्रॉपर ट्रीटमेंट जुटा पाना एक बड़ी चुनौती होगी. राज्य का सबसे बड़ा दून हॉस्पिटल इस चुनौती के लिए तैयारियों में जुटा है. दून मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. आशुतोष सयाना बताते हैं कि वो इन दिनों प्लेन एमबीबीएस डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ को ट्रेंड कर रहे हैं ताकि ज़रूरत पड़ने पर उनकी मदद ली जा सके!