हल्द्वानी।भारत समेत को देशों में 1 मई विश्व मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन आज के इस हालात में सबसे बुरे हाल अगर किसी के हैं तो वो मजदूर के ही हैं कोरोना की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी का हुआ है तो मजदूर को हुआ है जिसकी रोजी-रोटी भी छिन गई है विश्व मजदूर दिवस के दिन हमने जब मजदूरों का हाल जाना तो उनका यही कहना था कि कोरोना से मरे ना मरे भूख से जरूर मर जाएंगे।
कुमाऊं की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले हल्द्वानी शहर में यूपी, बिहार सहित देश के कई राज्यों से मजदूर यहां मजदूरी करने के लिए आते हैं बड़ी तादाद में खनन कार्यों में मजदूरों की आवश्यकता होती है इसके अलावा भवन निर्माण में भी भारी मात्रा में यहां मजदूर काम करते हैं लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने मजदूरों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है। हल्द्वानी के अब्दुल्ला बिल्डिंग के पास हर रोज मजदूरों की मंडी लगती है जहां से ठेकेदार अपनी आवश्यकताओं के हिसाब से मजदूर लेकर जाते हैं लेकिन इन दिनों सारे मजदूर बेरोजगार हैं कोरोना कर्फ्यू की वजह से मजदूरों को दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है वो अपना परिवार भी नहीं पाल पा रहे हैं, मजदूरों का कहना है कि उन्हें पता ही नहीं कि आज विश्व मजदूर दिवस होता है वह तो सुबह से शाम तक अपने दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद करते हैं लेकिन इस कोरोना काल में उनके लिए कोरोना इतना घातक नहीं जितना उनको काम न मिलना है, मजदूरों का कहना है की वो कोरोना से मरे न मरे लेकिन हालात ऐसे ही रहे तो भूख से जरूर मर जाएंगे।