सितारगंज। विभिन्न मांगों को लेकर आशा कार्यकर्ताओं का कार्य बहिष्कार दूसरे दिन के।पहुंच गया। उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के बैनर तले के कार्यकर्ताओं ने जोरदार प्रदर्शन किया।
मंगलवार को प्रदर्शन कर कार्यकर्ताओं ने कहा कि लंबे समय से काम के बदले मानदेय फिक्स करने की लड़ाई लड़ रही आशाओं को आंगनबाड़ी की तरह मानदेय फिक्स किया जाए। कार्यकर्ताओं का कहना था कि आशाओं ने राज्य भर में ब्लॉकों में प्रदर्शन मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा था। लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी। इसलिए कार्यबहिष्कार किया जा रहा है। कहा कि आशा अपनी समस्याओं से राज्य सरकार को 2017 के बाद से ही अवगत करा रही हैं, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई।
जिला अध्यक्ष ने कहा कि आशाओं के श्रम का लगातार शोषण खुद सरकार ही कर रही है। उन्होंने कहा कि पूरे राज्य की आशाएँ एक साथ आंदोलन पर हैं और इस बार आरपार की लड़ाई लड़ी जायेगी।
कहा गया कि पहले से ही काम के बोझ तले दबी आशाओं को केंद्र और भी ज्यादा क़िस्म के विभिन्न कामों में लगा दिया गया है। लेकिन जब जब काम के एवज में मासिक वेतन या मानदेय देने की बात आती है तो आशाओं को स्वैच्छिक कार्यकर्ता बता दिया जाता है। सरकार ने शोषण करने का अद्भुत तरीका खोज निकाला है कि कोविड से लेकर पल्स पोलियो, टीकाकरण, मातृ शिशु सुरक्षा, सर्वे, गणना, परिवार नियोजन, मलेरिया, डेंगू की जागरूकता के लिए घर घर जाने तक सारे काम आशाओं से कराओ और वेतन की बात आते ही ‘सामाजिक कार्यकर्ता के नाम का सम्मान’ देकर इतिश्री कर लो। नए नए तरीके अपनाकर आशाओं का शोषण अब नहीं चलेगा, आशा वर्कर्स अपना अधिकार हासिल करके रहेंगी।
कार्यबहिष्कार धरने में सैकड़ों की संख्या में आशा वर्कर्स मौजूद रहीं।